“हमको हँसते देख ज़माना जलता है...."

Ek Geet Sau Afsane

24-05-2022 • 13 mins

आलेख : सुजॉय चटर्जी

स्वर :  निमिषा सिंघल

प्रस्तुति : संज्ञा टण्डन

नमस्कार दोस्तों, ’एक गीत सौ अफ़साने’ की एक और कड़ी के साथ हम फिर हाज़िर हैं। फ़िल्म-संगीत की रचना प्रक्रिया और विभिन्न पहलुओं से सम्बन्धित रोचक प्रसंगों, दिलचस्प क़िस्सों और यादगार घटनाओं को समेटता है ’रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ का यह साप्ताहिक स्तम्भ। विश्वसनीय सूत्रों से प्राप्त जानकारियों और हमारे शोधकार्ताओं के निरन्तर खोज-बीन से इकट्ठा किए तथ्यों से परिपूर्ण है ’एक गीत सौ अफ़साने’ की यह श्रॄंखला। आज के अंक के लिए हमने चुना है वर्ष1956 की मशहूर फ़िल्म ’हम सब चोर हैं’ का गीत "हमको हँसते देख ज़माना जलता है"। जी. एम. दुर्रानी और मोहम्मद रफ़ी की आवाज़ें, मजरूह सुल्तानपुरी के बोल, और ओ. पी. नय्यर का संगीत। किस तरह का ताना-बाना था जी. एम. दुर्रानी और मोहम्मद रफ़ी के सुरीले सम्बन्ध का? कैसे दोनों दो मोड़ पर एक दूसरे के काम आये? क्या नाता है इसका फ़िल्म’हम सब चोर हैं’ के इस गीत के साथ? आगे चल कर किस फ़िल्म में रफ़ी साहब ने दुर्रानी साहब का पार्श्वगायन किया? ये सब, आज के अंक में।