“कभी ना कभी, कहीं ना कहीं, कोई ना कोई तो आएगा...."

Ek Geet Sau Afsane

05-07-2022 • 12 mins

आलेख : सुजॉय चटर्जी

स्वर : दीपिका भाटिया

प्रस्तुति : संज्ञा टण्डन

नमस्कार दोस्तों, ’एक गीत सौ अफ़साने’ की एक और कड़ी के साथ हम फिर हाज़िर हैं। फ़िल्म-संगीत की रचना प्रक्रिया और विभिन्न पहलुओं से सम्बन्धित रोचक प्रसंगों, दिलचस्प क़िस्सों और यादगार घटनाओं को समेटता है ’रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ का यह साप्ताहिक स्तम्भ। विश्वसनीय सूत्रों से प्राप्त जानकारियों और हमारे शोधकार्ताओं के निरन्तर खोज-बीन से इकट्ठा किए तथ्यों से परिपूर्ण है ’एक गीत सौ अफ़साने’ की यह श्रॄंखला। आज के अंक के लिए हमने चुना है वर्ष1964 की चर्चित फ़िल्म ’शराबी’ का गीत "कभी ना कभी, कहीं ना कहीं, कोई ना कोई तो आएगा"। मोहम्मद रफ़ी की आवाज़, राजिन्दर कृष्ण के बोल, और मदन मोहन का संगीत। 1958 में बन कर प्रदर्शित होने वाली इस फ़िल्म को बन कर तैयार होने में छह साल क्यों लग गए? इस गीत में1958 की दादा बर्मन के किस गीत के साथ समानता नज़र आती है? इस गीत के साथ रफ़ी साहब और बनारस का कौन सा मार्मिक किस्सा जुड़ा हुआ है? साथ ही राजिन्दर कृष्ण की लेखनी का विश्लेषण। ये सब आज के इस अंक में।