Ek Geet Sau Afsane

Radio Playback India

Every song has its own journey once it is released for the audiences but there are many back stories behind every song about which we generally remained unaware, so this series is for bringing to you all such back stories related to many favorite songs of our times, that are very much part of our life, stay tuned with Sujoy Chatterjee and Sangya Tandon for a weekly dose of Ek Geet Sau Afsane read less
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कुछ ना कहो, कुछ भी ना कहो
2d ago
कुछ ना कहो, कुछ भी ना कहो
परिकल्पना : सजीव सारथी आलेख : सुजॉय चटर्जी स्वर : सुमेधा अग्रश्री प्रस्तुति : संज्ञा टंडन नमस्कार दोस्तों, ’एक गीत सौ अफ़साने’ की एक और कड़ी के साथ हम फिर हाज़िर हैं। फ़िल्म और ग़ैर-फ़िल्म-संगीत की रचना प्रक्रिया और उनके विभिन्न पहलुओं से सम्बन्धित रोचक प्रसंगों, दिलचस्प क़िस्सों और यादगार घटनाओं को समेटता है ’रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ का यह साप्ताहिक स्तम्भ। विश्वसनीय सूत्रों से प्राप्त जानकारियों और हमारे शोधकर्ताओं के निरन्तर खोज-बीन से इकट्ठा किए तथ्यों से परिपूर्ण है ’एक गीत सौ अफ़साने’ की यह श्रॄंखला। दोस्तों, आज के इस अंक के लिए हमें चुना है साल 1994 की फ़िल्म ’1942: A Love Story’ का गीत "कुछ ना कहो, कुछ भी ना कहो"। गीत के दो संस्करण हैं, ए क कुमार सानू की आवाज़ में, और एक लता मंगेशकर की आवाज़ में। जावेद अख़्तर के बोल, और राहुल देव बर्मन का संगीत। पंचम द्वारा बनाये गये इस गीत की धुन को सुन कर विधु विनोद चोपड़ा क्यों बौखला गए थे? इस गीत की रेकॉर्डिंग के बाद आर. डी. बर्मन ने कुमार सानू पर गालियों की बारिश क्यों की? गीत के female version को लेकर किस तरह के संशय और विवाद उत्पन्न हुए? कविता कृष्णमूर्ति के साथ यह गीत किस तरह से जुड़ा हुआ है? ये सब आज के इस अंक में?
चले आना सनम, उठाये क़दम
6d ago
चले आना सनम, उठाये क़दम
परिकल्पना : सजीव सारथी ।। आलेख : सुजॉय चटर्जी ।। स्वर : रचिता देशपांडे ।। प्रस्तुति : संज्ञा टंडन ।। नमस्कार दोस्तों, ’एक गीत सौ अफ़साने’ की एक और कड़ी के साथ हम फिर हाज़िर हैं। फ़िल्म और ग़ैर-फ़िल्म-संगीत की रचना प्रक्रिया और उनके विभिन्न पहलुओं से सम्बन्धित रोचक प्रसंगों, दिलचस्प क़िस्सों और यादगार घटनाओं को समेटता है ’रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ का यह साप्ताहिक स्तम्भ। विश्वसनीय सूत्रों से प्राप्त जानकारियों और हमारे शोधकर्ताओं के निरन्तर खोज-बीन से इकट्ठा किए तथ्यों से परिपूर्ण है ’एक गीत सौ अफ़साने’ की यह श्रॄंखला। दोस्तों, आज के इस अंक के लिए हमें चुना है साल 1963 की फ़िल्म ’देखा प्यार तुम्हारा’ का गीत " चले आना सनम, उठाये क़दम"। आशा भोसले की आवाज़, मजरूह सुल्तानपुरी के बोल,और राज रतन का संगीत। क्या है इस फ़िल्म का पार्श्व, इसकी विषयवस्तु, इससे जुड़े लोग और कलाकार? फ़िल्म की कहानी में किस तरह यह गीत फ़िट होता है? इस गीत के बहाने जाने इस गीत व इस फ़िल्म से जुड़ी वो बातें जिन पर शायद अब वक़्त की धूल चढ़ चुकी है।
ये जलसा ताजपोशी का मुबारक हो
02-04-2024
ये जलसा ताजपोशी का मुबारक हो
परिकल्पना : सजीव सारथी आलेख : सुजॉय चटर्जी प्रस्तुति : संज्ञा टंडन नमस्कार दोस्तों, ’एक गीत सौ अफ़साने’ की एक और कड़ी के साथ हम फिर हाज़िर हैं। फ़िल्म और ग़ैर-फ़िल्म-संगीत की रचना प्रक्रिया और उनके विभिन्न पहलुओं से सम्बन्धित रोचक प्रसंगों, दिलचस्प क़िस्सों और यादगार घटनाओं को समेटता है ’रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ का यह साप्ताहिक स्तम्भ। विश्वसनीय सूत्रों से प्राप्त जानकारियों और हमारे शोधकर्ताओं के निरन्तर खोज-बीन से इकट्ठा किए तथ्यों से परिपूर्ण है ’एक गीत सौ अफ़साने’ की यह श्रॄंखला। दोस्तों, आज के इस अंक के लिए हमें चुनी है साल 1915 में रेकॉर्ड की हुई ग़ज़ल "ये जलसा ताजपोशी का मुबारक हो, मुबारक हो"। जानकी बाई की आवाज़। उन्हीं का यह कलाम है और उन्हीं की मौसिक़ी। इस मुबारकबादी मुजरे के बहाने जाने ग्रामोफ़ोन रेकॉर्डिंग के शुरुआती मशहूर कलाकारों में एक, जानकी बाई के जीवन की कहानी। इस ग़ज़ल की रेकॉर्डिंग से चार वर्ष पहले ब्रिटिश शासन के किस महत्वपूर्ण समारोह के परिप्रेक्ष्य में इसकी रचना करवाई गई थी? उस सजीव प्रस्तुति में जानकी बाई के साथ किस मशहूर गायिका ने इस ग़ज़ल में आवाज़ मिलायी थी? क्यों जानकी बाई को "छप्पन-छुरी" वाली कहा जाता है? इस रेकॉर्ड के तीस साल बाद, किस फ़िल्मी गीत में इस ग़ज़ल के मतले की पहली लाइन का प्रयोग गीतकार अहसान रिज़्वी ने किया? ये सब आज के इस अंक में।
शकील बदायूंनी के लिखे तीन होली गीत
26-03-2024
शकील बदायूंनी के लिखे तीन होली गीत
परिकल्पना : सजीव सारथी आलेख : सुजॉय चटर्जी प्रस्तुति : संज्ञा टंडन नमस्कार दोस्तों, ’एक गीत सौ अफ़साने’ की एक और कड़ी के साथ हम फिर हाज़िर हैं। फ़िल्म और ग़ैर-फ़िल्म-संगीत की रचना प्रक्रिया और उनके विभिन्न पहलुओं से सम्बन्धित रोचक प्रसंगों, दिलचस्प क़िस्सों और यादगार घटनाओं को समेटता है ’रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ का यह साप्ताहिक स्तम्भ। विश्वसनीय सूत्रों से प्राप्त जानकारियों और हमारे शोधकर्ताओं के निरन्तर खोज-बीन से इकट्ठा किए तथ्यों से परिपूर्ण है ’एक गीत सौ अफ़साने’ की यह श्रॄंखला। दोस्तों, आज का अंक ख़ास है। ख़ास इसलिए कि यह सप्ताह होली त्योहार का सप्ताह है। और जब बात होली की चलती है, तब बात आती है हुड़दंग की, एक दूसरे पर रंग डालने की, जी भर के झूमने-गाने और ख़ुशियाँ मनाने की। और इन पहलुओं और भावनाओं को साकार करने में हमारी फ़िल्मी गीतों का ख़ास योगदान रहा है। बोलती फ़िल्मों के शुरुआती दौर से ही फ़िल्मी होली गीतों की अपनी अलग जगह रही है, अपना अलग पहचान रहा है। और होली गीतों के इस इतिहास को ’एक गीत सौ अफ़साने’ की एक कड़ी में समेटना असम्भव है। इसलिए आज के इस विशेषांक के लिए हम फ़िल्मी होली गीतों के समुन्दर में से चुन लाये हैं केवल एक ही गीतकार, शकील बदायूंनी के लिखे तीन बेहतरीन होली गीतों से सम्बन्धित कुछ बातें।
भारत की एक सन्नारी की हम कथा सुनाते हैं...
19-03-2024
भारत की एक सन्नारी की हम कथा सुनाते हैं...
परिकल्पना : सजीव सारथी आलेख : सुजॉय चटर्जी वाचन : शहनीला नजीब प्रस्तुति : संज्ञा टंडन नमस्कार दोस्तों, ’एक गीत सौ अफ़साने’ की एक और कड़ी के साथ हम फिर हाज़िर हैं। फ़िल्म और ग़ैर-फ़िल्म-संगीत की रचना प्रक्रिया और उनके विभिन्न पहलुओं से सम्बन्धित रोचक प्रसंगों, दिलचस्प क़िस्सों और यादगार घटनाओं को समेटता है ’रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ का यह साप्ताहिक स्तम्भ। विश्वसनीय सूत्रों से प्राप्त जानकारियों और हमारे शोधकर्ताओं के निरन्तर खोज-बीन से इकट्ठा किए तथ्यों से परिपूर्ण है ’एक गीत सौ अफ़साने’ की यह श्रॄंखला। दोस्तों,आज के अंक के लिए हमने चुना है साल 1943 की फ़िल्म ’राम राज्य’ का गीत "भारत की एक सन्नारी की हम कथा सुनाते हैं"। राम आप्टे और मधुसुदन जानी की आवाज़ें, रमेश गुप्त के बोल, और शंकरराव व्यास का संगीत। ’प्रकाश पिक्चर्स’ के स्थापक विजय भट्ट और शंकरभाई भट्ट का किस तरह से संगीतकार शंकरराव व्यास से सम्पर्क हुआ और कैसे ये इस बैनर की धार्मिक व पौराणिक फ़िल्मों के संगीतकार बने? इस गीत के पार्श्वगायकों को लेकर किस तरह का भ्रम वर्षों तक विद्यमान रहा और इसका कारण क्या था? अस्सी के दशक में यह भ्रम कैसे दूर हुआ? फ़िल्म में इस गीत का अवस्थान और इसका पूरा वृत्तान्त, आज के इस अंक में। साथ ही जानिये कि इसी गीत से मिलता-जुलता रामानन्द सागर द्वारा रचित टीवी धारावाहिक ’रामायण’ में वह प्रसिद्ध गीत कौन सा था?
चिट्ठी आयी है वतन से...
13-03-2024
चिट्ठी आयी है वतन से...
परिकल्पना : सजीव सारथी ।। आलेख : सुजॉय चटर्जी ।। वाचन : रचिता देशपांडे ।। प्रस्तुति : संज्ञा टंडन ।। नमस्कार दोस्तों, ’एक गीत सौ अफ़साने’ की एक और कड़ी के साथ हम फिर हाज़िर हैं। फ़िल्म और ग़ैर-फ़िल्म-संगीत की रचना प्रक्रिया और उनके विभिन्न पहलुओं से सम्बन्धित रोचक प्रसंगों, दिलचस्प क़िस्सों और यादगार घटनाओं को समेटता है ’रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ का यह साप्ताहिक स्तम्भ। विश्वसनीय सूत्रों से प्राप्त जानकारियों और हमारे शोधकर्ताओं के निरन्तर खोज-बीन से इकट्ठा किए तथ्यों से परिपूर्ण है ’एक गीत सौ अफ़साने’ की यह श्रॄंखला। दोस्तों, आज के अंक के लिए हमने चुना है साल 1986 की फ़िल्म ’नाम’ का गीत "चिट्ठी आयी है वतन से चिट्ठी आयी है"। पंकज उधास और साथियों की आवाज़ें, आनन्द बक्शी के बोल, और लक्ष्मीकान्त-प्यारेलाल का संगीत। निर्माता राजेन्द्र कुमार को पंकज उधास से इस फ़िल्म में यह आइटम गीत गवाने का ख़याल कैसे आया? पंकज उधास ने इस गीत को गाने का न्योता स्वीकारते हुए राजेन्द्र कुमार से माफ़ी क्यों मांगी? इस गीत की रेकॉर्डिंग करते समय संगीतकार लक्ष्मीकान्त ने फ़िल्मी गीत के रेकॉर्डिंग तकनीक की कौन सी प्रचलित परम्परा को तोड़ी? सिबाका गीतमाला के वार्षिक कार्यक्रम में प्रथम स्थान प्राप्त करने के बावजूद इस गीत को फ़िल्मफ़ेयर पुरस्कार क्यों नहीं मिल पाया? BBC Radio की ओर से इस गीत को कैसा सम्मान मिला? ये सब, आज के इस अंक में।
राह पे रहते हैं, यादों पे बसर करते हैं...
05-03-2024
राह पे रहते हैं, यादों पे बसर करते हैं...
राह पे रहते हैं, यादों पे बसर करते हैं...फिल्म : नमकीन परिकल्पना : सजीव सारथी ।। आलेख : सुजॉय चटर्जी।। वाचन : शुभ्रा ठाकुर ।। प्रस्तुति : संज्ञा टंडन ।। नमस्कार दोस्तों, ’एक गीत सौ अफ़साने’ की एक और कड़ी के साथ हम फिर हाज़िर हैं। फ़िल्म और ग़ैर-फ़िल्म-संगीत की रचना प्रक्रिया और उनके विभिन्न पहलुओं से सम्बन्धित रोचक प्रसंगों, दिलचस्प क़िस्सों और यादगार घटनाओं को समेटता है ’रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ का यह साप्ताहिक स्तम्भ। विश्वसनीय सूत्रों से प्राप्त जानकारियों और हमारे शोधकर्ताओं के निरन्तर खोज-बीन से इकट्ठा किए तथ्यों से परिपूर्ण है ’एक गीत सौ अफ़साने’ की यह श्रॄंखला। दोस्तों, आज के अंक के लिए हमने चुना है साल 1982 की फ़िल्म ’नमकीन’ का गीत "राह पे रहते हैं, यादों पे बसर करते हैं"। किशोर कुमार की आवाज़, गुलज़ार के बोल, और राहुल देव बर्मन का संगीत। क्या थी ’नमकीन’ की कहानी और कैसे यह गीत रचा-बसा है इस कहानी में? नवाब वाजिद अली शाह के किस शेर का आधार गुलज़ार ने इस गीत के मुखड़े को बनाया? भारत के स्वाधीनता संग्राम के सन्दर्भ में इस शेर का क्या महत्व रहा है? और किन किन फ़िल्मी गीतकारों ने भी इस शेर का सहारा लिया? पंचम ने अपने किस पुराने गीत की एक धुन का प्रयोग इस गीत के अन्तराल संगीत में किया? इस गीत के साथ इस फ़िल्म के दो अलग अन्त की क्या विडम्बना रही है? ये सब, आज के इस अंक में।
ये ज़िन्दगी उसी की है...
29-02-2024
ये ज़िन्दगी उसी की है...
परिकल्पना : सजीव सारथी आलेख : सुजॉय चटर्जी वाचन : शुभ्रा ठाकुर प्रस्तुति : संज्ञा टंडन नमस्कार दोस्तों, ’एक गीत सौ अफ़साने’ की एक और कड़ी के साथ हम फिर हाज़िर हैं। फ़िल्म और ग़ैर-फ़िल्म-संगीत की रचना प्रक्रिया और उनके विभिन्न पहलुओं से सम्बन्धित रोचक प्रसंगों, दिलचस्प क़िस्सों और यादगार घटनाओं को समेटता है ’रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ का यह साप्ताहिक स्तम्भ। विश्वसनीय सूत्रों से प्राप्त जानकारियों और हमारे शोधकर्ताओं के निरन्तर खोज-बीन से इकट्ठा किए तथ्यों से परिपूर्ण है ’एक गीत सौ अफ़साने’ की यह श्रॄंखला। दोस्तों, आज के अंक के लिए हमने चुना है साल 1953 की फ़िल्म ’अनारकली’ का गीत "ये ज़िन्दगी उसी की है, जो किसी का हो गया"। लता मंगेशकर की आवाज़, राजेन्द्र कृष्ण के बोल, और सी. रामचन्द्र का संगीत। शुरू-शुरू में संगीतकार बसन्त प्रकाश इस फ़िल्म के संगीतकार होने के बावजूद बीच में ही संगीतकार क्यों बदलना पड़ा? इस गीत के साथ ’मुग़ल-ए-आज़म’ फ़िल्म के "जब प्यार किया तो डरना क्या" गीत की तुलना में कौन सी ग़लत धारणा आम लोगों में बनी हुई है? प्रस्तुत गीत के साथ फ़िल्म के क्लाइमैक्स सीन तथा ’मुग़ल-ए-आज़म’ फ़िल्म के क्लाइमैक्स के बीच कैसा अन्तर है? उस्ताद बड़े ग़ुलाम अली ख़ान और पंडित जसराज के बीच इस गीत के संदर्भ में कौन सी दिलचस्प घटना मशहूर है? ये सब, आज के इस अंक में।
क्या मौसम आया है...
20-02-2024
क्या मौसम आया है...
परिकल्पना : सजीव सारथी आलेख : सुजॉय चटर्जी वाचन : जया शुक्ला प्रस्तुति : संज्ञा टंडन नमस्कार दोस्तों, ’एक गीत सौ अफ़साने’ की एक और कड़ी के साथ हम फिर हाज़िर हैं। फ़िल्म और ग़ैर-फ़िल्म-संगीत की रचना प्रक्रिया और उनके विभिन्न पहलुओं से सम्बन्धित रोचक प्रसंगों, दिलचस्प क़िस्सों और यादगार घटनाओं को समेटता है ’रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ का यह साप्ताहिक स्तम्भ। विश्वसनीय सूत्रों से प्राप्त जानकारियों और हमारे शोधकर्ताओं के निरन्तर खोज-बीन से इकट्ठा किए तथ्यों से परिपूर्ण है ’एक गीत सौ अफ़साने’ की यह श्रॄंखला। दोस्तों, आज के अंक के लिए हमने चुना है साल 1993 की फ़िल्म ’अनाड़ी’ का गीत "क्या मौसम आया है"। साधना सरगम और उदित नारायण की आवाज़ें, समीर के बोल, और आनन्द-मिलिन्द का संगीत। क्या है इस फ़िल्म के निर्माण का पार्श्व? नायक-नायिका पर फ़िल्माये गए इस ख़ुशनुमा युगल गीत में प्रेम प्रसंग क्यों नहीं है? गीतकार समीर ने स्थान-काल-पात्र को ध्यान में रखते हुए इस गीत को किस तरह पूर्णता प्रदान की? इस फ़िल्म में नायिका के लिए उस दौर की चर्चित पार्श्वगायिकाओं में से साधना सरगम का ही चुनाव क्यों हुआ? ये सब, आज के इस अंक में।
कहाँ उड़ चले हैं मन प्राण मेरे...
13-02-2024
कहाँ उड़ चले हैं मन प्राण मेरे...
परिकल्पना : सजीव सारथी आलेख : सुजॉय चटर्जी प्रस्तुति : संज्ञा टंडन नमस्कार दोस्तों, ’एक गीत सौ अफ़साने’ की एक और कड़ी के साथ हम फिर हाज़िर हैं। फ़िल्म और ग़ैर-फ़िल्म-संगीत की रचना प्रक्रिया और उनके विभिन्न पहलुओं से सम्बन्धित रोचक प्रसंगों, दिलचस्प क़िस्सों और यादगार घटनाओं को समेटता है ’रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ का यह साप्ताहिक स्तम्भ। विश्वसनीय सूत्रों से प्राप्त जानकारियों और हमारे शोधकर्ताओं के निरन्तर खोज-बीन से इकट्ठा किए तथ्यों से परिपूर्ण है ’एक गीत सौ अफ़साने’ की यह श्रॄंखला। दोस्तों, आज के अंक के लिए हमने चुना है साल 1961 की फ़िल्म ’भाभी की चूड़ियाँ’ का गीत "कहाँ उड़ चले हैं मन प्राण मेरे"। आशा भोसले और मुकेश की आवाज़ें, पंडित नरेन्द्र शर्मा के बोल, और सुधीर फड़के का संगीत। फ़िल्म की कहानी के प्रवाह में क्या है इस गीत की भूमिका? इस गीत के सन्दर्भ में यह फ़िल्म अपनी मूल मराठी फ़िल्म से किस प्रकार भिन्न है? पंडित नरेन्द्र शर्मा और सुधीर फड़के के कौन से आयाम इस गीत में झलक पाते हैं? ये सब, आज के इस अंक में।
कौन डगर कौन शहर, तू चली कहाँ...
06-02-2024
कौन डगर कौन शहर, तू चली कहाँ...
आलेख : सुजॉय चटर्जी वाचन : रीतेश खरे प्रस्तुति : संज्ञा टंडन नमस्कार दोस्तों, ’एक गीत सौ अफ़साने’ की एक और कड़ी के साथ हम फिर हाज़िर हैं। फ़िल्म और ग़ैर-फ़िल्म-संगीत की रचना प्रक्रिया और उनके विभिन्न पहलुओं से सम्बन्धित रोचक प्रसंगों, दिलचस्प क़िस्सों और यादगार घटनाओं को समेटता है ’रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ का यह साप्ताहिक स्तम्भ। विश्वसनीय सूत्रों से प्राप्त जानकारियों और हमारे शोधकर्ताओं के निरन्तर खोज-बीन से इकट्ठा किए तथ्यों से परिपूर्ण है ’एक गीत सौ अफ़साने’ की यह श्रॄंखला। दोस्तों, आज के अंक के लिए हमने चुना है साल 2001 की फ़िल्म ’लज्जा’ का गीत "कौन डगर कौन शहर, तू चली कहाँ"। लता मंगेशकर की आवाज़, प्रसून जोशी के बोल, और इलैयाराजा का संगीत। फ़िल्म में समीर और अनु मलिक गीतकार-संगीतकार होते हुए भी इस गीत के लिए अलग गीतकार-संगीतकार की आवश्यकता क्यों आन पड़ी? क्यों चुनाव हुआ प्रसून जोशी और इलैयाराजा का? इस गीत की रेकॉर्डिंग से जुड़ी कैसी यादें हैं प्रसून जोशी की? लता मंगेशकर के आख़िरी दिनों में वे प्रसून जोशी के साथ एक गीत पर काम कर रही थीं। वह कौन सा गीत था और उसके साथ फ़िल्म ’लज्जा’ के इस गीत की क्या समानता है? ये सब, आज के इस अंक में।
आशा भोसले के बाद ओ. पी. नय्यर की पार्श्वगायिकाएँ
30-01-2024
आशा भोसले के बाद ओ. पी. नय्यर की पार्श्वगायिकाएँ
आलेख : सुजॉय चटर्जी वाचन : दिलीप बैनर्जी प्रस्तुति : संज्ञा टंडन नमस्कार दोस्तों, ’एक गीत सौ अफ़साने’ की एक और कड़ी के साथ हम फिर हाज़िर हैं। फ़िल्म और ग़ैर-फ़िल्म-संगीत की रचना प्रक्रिया और उनके विभिन्न पहलुओं से सम्बन्धित रोचक प्रसंगों, दिलचस्प क़िस्सों और यादगार घटनाओं को समेटता है ’रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ का यह साप्ताहिक स्तम्भ। विश्वसनीय सूत्रों से प्राप्त जानकारियों और हमारे शोधकार्ताओं के निरन्तर खोज-बीन से इकट्ठा किए तथ्यों से परिपूर्ण है ’एक गीत सौ अफ़साने’ की यह श्रॄंखला। दोस्तों, आज का अंक है ख़ास क्योंकि आज हम आ पहुँचे हैं इस सीरीज़ के 150-वें अंक पर। यानी कि आज है ’एक गीत सौ अफ़साने’ का हीरक-स्वर्ण-जयन्ती अंक। इस अंक को ख़ास बनाने के लिए हमने चुना है संगीतकार ओ. पी. नय्यर साहब को जिनकी 28 जनवरी को ण्यतिथि थी। जी नहीं, हम उनके संगीतबद्ध किसी गीत के बनने की कहानी नहीं सुनाने जा रहे हैं आज। ऐसा तो हम अपने सामान्य अंकों में करते ही हैं। आज के इस ख़ास मौके के लिए हमने चुना है नय्यर साहब के गीतों का एक ख़ास पहलू। दोस्तों, ओ. पी. नय्यर एक ऐसे संगीतकार हुए जो शुरु से लेकर अन्त तक अपने उसूलों पर चले, और किसी के भी लिए उन्होंने अपना सर नीचे नहीं झुकाया, फिर चाहे उनकी हाथ से फ़िल्म चली जाए या गायक-गायिकाएँ मुंह मोड़ ले। करियर के शुरुआती दिनों में ही एक ग़लत फ़हमी की वजह से उन्होंने लता मंगेशकर से किनारा कर लिया था। और अपने करियर के अन्तिम चरण में अपनी चहेती गायिका आशा भोसले से भी उन्होंने सारे संबंध तोड़ दिए। आइए आज हम नज़र डाले उन पार्श्वगायिकाओं द्वारा गाये नय्यर साहब के गीतों पर जो बने आशा भोसले से अलग होने के बाद।ye nahi padhna hai
मैं ग़रीबों का दिल हूँ वतन की ज़बां...
23-01-2024
मैं ग़रीबों का दिल हूँ वतन की ज़बां...
आलेख : सुजॉय चटर्जी वाचन : मातृका प्रस्तुति : संज्ञा टंडननमस्कार दोस्तों, ’एक गीत सौ अफ़साने’ की एक और कड़ी के साथ हम फिर हाज़िर हैं। फ़िल्म और ग़ैर-फ़िल्म-संगीत की रचना प्रक्रिया और उनके विभिन्न पहलुओं से सम्बन्धित रोचक प्रसंगों, दिलचस्प क़िस्सों और यादगार घटनाओं को समेटता है ’रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ का यह साप्ताहिक स्तम्भ। विश्वसनीय सूत्रों से प्राप्त जानकारियों और हमारे शोधकर्ताओं के निरन्तर खोज-बीन से इकट्ठा किए तथ्यों से परिपूर्ण है ’एक गीत सौ अफ़साने’ की यह श्रॄंखला। दोस्तों, आज के अंक के लिए हमने चुना है साल 1955 की फ़िल्म ’आब-ए-हयात’ का गीत "मैं ग़रीबों का दिल हूँ वतन की ज़बां"। हेमन्त कुमार की आवाज़, हसरत जयपुरी के बोल, और सरदार मलिक का संगीत। किस तरह से फ़िल्मिस्तान ने इस फ़िल्म की योजना बनाई? फ़िल्म के निर्देशक, संगीतकार और गीतकार चुनने के पीछे कौन सी रणनीति अपनायी गई? किस तरह से हसरत जयपुरी ने कहानी के निचोड़ और नायक के चरित्र व व्यक्तित्व को साकार किया गीत के तीनों अन्तरों में? ’आब-ए-हयात’ जुमले का क्या इतिहास है? फ़िल्मिस्तान की अन्य फ़िल्म ’शबिस्तान’ के साथ ’आब-ए-हयात’ की क्या समानता है? ये सब, आज के इस अंक में।
पिया मिलन को जाना...
16-01-2024
पिया मिलन को जाना...
आलेख : सुजॉय चटर्जी वाचन : शुभम बारी प्रस्तुति : संज्ञा टंडन नमस्कार दोस्तों, ’एक गीत सौ अफ़साने’ की एक और कड़ी के साथ हम फिर हाज़िर हैं। फ़िल्म और ग़ैर-फ़िल्म-संगीत की रचना प्रक्रिया और उनके विभिन्न पहलुओं से सम्बन्धित रोचक प्रसंगों, दिलचस्प क़िस्सों और यादगार घटनाओं को समेटता है ’रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ का यह साप्ताहिक स्तम्भ। विश्वसनीय सूत्रों से प्राप्त जानकारियों और हमारे शोधकर्ताओं के निरन्तर खोज-बीन से इकट्ठा किए तथ्यों से परिपूर्ण है ’एक गीत सौ अफ़साने’ की यह श्रॄंखला। दोस्तों, आज के अंक के लिए हमने चुना है साल 1939 की फ़िल्म ’कपालकुण्डला’ का गीत "पिया मिलन को जाना"। आरज़ू लखनवी के बोल, तथा स्वर और संगीत पंकज मल्लिक का। प्रसिद्ध उपन्यास ’कपालकुण्डला’ के किस चरित्र पर यह गीत फ़िल्माया गया है और कहानी के किस मोड़ व संदर्भ में। आरज़ू लखनवी ने शब्दों का कैसा ताना-बाना बुना है इस गीत के भाव को व्यक्त करने के लिए? किस अन्य फ़िल्म में पंकज मल्लिक और इला घोष की आवाज़ों में यह गीत सुनाई देता है? दक्षिण भारत के किन चार फ़िल्मों में इसी गीत की धुन पर गीत बने हैं? ये सब, आज के इस अंक में।
दुनिया ये दुनिया, तूफ़ान मेल...
09-01-2024
दुनिया ये दुनिया, तूफ़ान मेल...
आलेख : सुजॉय चटर्जी वाचन : दीप्ति अग्रवाल प्रस्तुति : संज्ञा टंडन नमस्कार दोस्तों, ’एक गीत सौ अफ़साने’ की एक और कड़ी के साथ हम फिर हाज़िर हैं। फ़िल्म और ग़ैर-फ़िल्म-संगीत की रचना प्रक्रिया और उनके विभिन्न पहलुओं से सम्बन्धित रोचक प्रसंगों, दिलचस्प क़िस्सों और यादगार घटनाओं को समेटता है ’रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ का यह साप्ताहिक स्तम्भ। विश्वसनीय सूत्रों से प्राप्त जानकारियों और हमारे शोधकर्ताओं के निरन्तर खोज-बीन से इकट्ठा किए तथ्यों से परिपूर्ण है ’एक गीत सौ अफ़साने’ की यह श्रॄंखला। दोस्तों, आज के अंक के लिए हमने चुना है साल 1942 की फ़िल्म ’जवाब’ का गीत "दुनिया ये दुनिया, तूफ़ान मेल"। कानन देवी की आवाज़; पंडित मधुर के बोल, और कमल दासगुप्ता का संगीत। फ़िल्म ’जवाब’ में पी. सी. बरुआ और कानन देवी ne फ़िल्म जगत की किस प्रचलित धारा को त्याग कर एक अलग तरीके से फिर एक बार साथ-साथ काम किया? गीतकार पंडित मधुर और संगीतकार कमल दासगुप्ता, दोनों की ही यह प्रथम हिन्दी फ़िल्म थी। कैसे ये दोनों इस फ़िल्म के साथ जुड़े? क्या है "तूफ़ान मेल" नामक रेलगाड़ी की हक़ीक़त? इस गीत के बोलों से रेलगाड़ी आधारित तमाम फ़िल्मी गीतों के किस पहलू की शुरुआत हुई थी? ये सब, आज के इस अंक में।
देखो 2000 ज़माना आ गया..
02-01-2024
देखो 2000 ज़माना आ गया..
आलेख : सुजॉय चटर्जी वाचन : दीपिका भाटिया प्रस्तुति : संज्ञा टंडन नमस्कार दोस्तों, ’एक गीत सौ अफ़साने’ की एक और कड़ी के साथ हम फिर हाज़िर हैं। फ़िल्म और ग़ैर-फ़िल्म-संगीत की रचना प्रक्रिया और उनके विभिन्न पहलुओं से सम्बन्धित रोचक प्रसंगों, दिलचस्प क़िस्सों और यादगार घटनाओं को समेटता है ’रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ का यह साप्ताहिक स्तम्भ। विश्वसनीय सूत्रों से प्राप्त जानकारियों और हमारे शोधकर्ताओं के निरन्तर खोज-बीन से इकट्ठा किए तथ्यों से परिपूर्ण है ’एक गीत सौ अफ़साने’ की यह श्रॄंखला। दोस्तों, आज के अंक के लिए हमने चुना है साल 2000 की फ़िल्म ’मेला’ का गीत "देखो 2000 ज़माना आ गया"। आमिर ख़ान, हरिहरन, लेज़ली लुइस और साथियों की आवाज़ें; धर्मेश दर्शन के बोल, और लेज़ली लुइस का संगीत। फ़िल्म की पटकथा में इस गीत का अवस्थान ना होते हुए भी इसे किस आधार पर फ़िल्म में शामिल किया गया? फ़िल्म के औपचारिक गीतकार देव कोहली और समीर तथा संगीतकार अनु मलिक और राजेश रोशन के बजाय इस गीत की रचना धर्मेश दर्शन और लेज़ली लुइस ने क्यों की? इस गीत को अधिक प्रभावशाली बनाने के लिए दो महत्वपूर्ण चीज़ें डाली गईं। कौन सी थी वो दो बातें जिन्होंने गीत की काया ही पलट दी? ये सब, आज के इस अंक में।
पल पल हर पल...
26-12-2023
पल पल हर पल...
शोध और आलेख : सुजॉय चटर्जी प्रस्तुति : संज्ञा टंडन नमस्कार दोस्तों, ’एक गीत सौ अफ़साने’ की एक और कड़ी के साथ हम फिर हाज़िर हैं। फ़िल्म और ग़ैर-फ़िल्म-संगीत की रचना प्रक्रिया और उनके विभिन्न पहलुओं से सम्बन्धित रोचक प्रसंगों, दिलचस्प क़िस्सों और यादगार घटनाओं को समेटता है ’रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ का यह साप्ताहिक स्तम्भ। विश्वसनीय सूत्रों से प्राप्त जानकारियों और हमारे शोधकर्ताओं के निरन्तर खोज-बीन से इकट्ठा किए तथ्यों से परिपूर्ण है ’एक गीत सौ अफ़साने’ की यह श्रॄंखला। दोस्तों, आज के अंक के लिए हमने चुना है साल 2006 की फ़िल्म ’लगे रहो मुन्ना भाई’ का गीत "पल पल हर पल"। सोनू निगम और श्रेया घोषाल की आवाज़ें; स्वानन्द किरकिरे के बोल, और शान्तनु मोइत्रा का संगीत। मुन्ना भाई सीरीज़ की फ़िल्मों में संजय दत्त की आवाज़ विनोद राठौड़ होने के बावजूद इस गीत को सोनू निगम से क्यों गवाया गया। और ऐसा करने के लिए निर्माता-निर्देशक ने कौन सा राह इख़्तियार किया? शान्तनु मोइत्रा द्वारा रचे सोनू निगम और श्रेया घोषाल के गाये युगल गीतों में किस तरह की समानतायें देखने को मिलती हैं? प्रस्तुत गीत किस विदेशी गीत से प्रेरित है, उसकी क्या कहानी है, और उस मौलिक धुन पर प्रस्तुत गीत के अलावा और कौन सा हिन्दी फ़िल्मी गीत आधारित है? ये सब, आज के इस अंक में।
मोरा पिया बुलावे आधी रात को...
19-12-2023
मोरा पिया बुलावे आधी रात को...
आलेख : सुजॉय चटर्जी वाचन : शुभ्रा ठाकुर प्रस्तुति : संज्ञा टंडन नमस्कार दोस्तों, ’एक गीत सौ अफ़साने’ की एक और कड़ी के साथ हम फिर हाज़िर हैं। फ़िल्म और ग़ैर-फ़िल्म-संगीत की रचना प्रक्रिया और उनके विभिन्न पहलुओं से सम्बन्धित रोचक प्रसंगों, दिलचस्प क़िस्सों और यादगार घटनाओं को समेटता है ’रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ का यह साप्ताहिक स्तम्भ। विश्वसनीय सूत्रों से प्राप्त जानकारियों और हमारे शोधकर्ताओं के निरन्तर खोज-बीन से इकट्ठा किए तथ्यों से परिपूर्ण है ’एक गीत सौ अफ़साने’ की यह श्रॄंखला। दोस्तों, आज के अंक के लिए हमने चुनी है साल 1922 में ग्रामोफ़ोन कंपनी लिमिटेड के रेकॉर्ड पर जारी मलका जान आगरेवाली की गायी हुई राग मिश्र देश आधारित ठुमरी, जिसके बोल हैं "मोरा पिया बुलावे आधी रात को, नदिया बैरी भई"। क्या हैं इस ठुमरी की विशेषतायें? ठुमरी गायन में मलका जान आगरेवाली कौन सा परिवर्तन लेकर आयीं? ग्रामोफ़ोन कंपनी ने सबसे पहले उनसे और कलकत्ते के पियारा साहिब से एक परम्परा की शुरुआत की थी। कौन सी थी वह परम्परा? भारतीय रेकॉर्डेड संगीत इतिहास के प्रथम पीढ़ी की मशहूर गायिका मलका जान आगरेवाली के जीवन और संगीत सफ़र की जो भी थोड़ी-बहुत विश्वसनीय जानकारी उपलब्ध है, उसी को हमने आज के इस अंक में समेटने की कोशिश की है।
ज़िक्र होता है जब क़यामत का...
11-12-2023
ज़िक्र होता है जब क़यामत का...
आलेख : सुजॉय चटर्जी वाचन : रीतेश खरे प्रस्तुति : संज्ञा टंडन नमस्कार दोस्तों, ’एक गीत सौ अफ़साने’ की एक और कड़ी के साथ हम फिर हाज़िर हैं। फ़िल्म और ग़ैर-फ़िल्म-संगीत की रचना प्रक्रिया और उनके विभिन्न पहलुओं से सम्बन्धित रोचक प्रसंगों, दिलचस्प क़िस्सों और यादगार घटनाओं को समेटता है ’रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ का यह साप्ताहिक स्तम्भ। विश्वसनीय सूत्रों से प्राप्त जानकारियों और हमारे शोधकर्ताओं के निरन्तर खोज-बीन से इकट्ठा किए तथ्यों से परिपूर्ण है ’एक गीत सौ अफ़साने’ की यह श्रॄंखला। दोस्तों, आज के अंक के लिए हमने चुना है साल 1970 की फ़िल्म ’माइ लव’ का गीत- "ज़िक्र होता है जब क़यामत का, तेरे जल्वों की बात होती है"। मुकेश की आवाज़, आनन्द बक्शी के बोल, और दान सिंह का संगीत। बड़ी स्टारकास्ट वाली इस फ़िल्म में दान सिंह जैसे नये और कम बजट की फ़िल्मों के संगीतकार को क्यों चुना गया? इस गीत के साथ दान सिंह, खेमचन्द प्रकाश और राग भैरवी का क्या सम्बन्ध है? फ़िल्म के बाहर यह गीत ज़बरदस्त हिट होने के बावजूद फ़िल्म के पर्दे पर कौन सी कमी रह गई? इस फ़िल्म के बाद दूसरे संगीतकारों के कौन से बरताव से दुखी होकर दान सिंह ने बम्बई छोड़ने का फ़ैसला किया? ये सब आज के इस अंक में।
वो लम्हा जिसे जिया ही ना था...
05-12-2023
वो लम्हा जिसे जिया ही ना था...
आलेख : सुजॉय चटर्जी प्रस्तुति : संज्ञा टंडन नमस्कार दोस्तों, ’एक गीत सौ अफ़साने’ की एक और कड़ी के साथ हम फिर हाज़िर हैं। फ़िल्म और ग़ैर-फ़िल्म-संगीत की रचना प्रक्रिया और उनके विभिन्न पहलुओं से सम्बन्धित रोचक प्रसंगों, दिलचस्प क़िस्सों और यादगार घटनाओं को समेटता है ’रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ का यह साप्ताहिक स्तम्भ। विश्वसनीय सूत्रों से प्राप्त जानकारियों और हमारे शोधकार्ताओं के निरन्तर खोज-बीन से इकट्ठा किए तथ्यों से परिपूर्ण है ’एक गीत सौ अफ़साने’ की यह श्रॄंखला। दोस्तों, आज के अंक के लिए हमने चुना है साल 2020 की फ़िल्म ’शकीला’ का गीत - "वो लम्हा जिसे जिया ही न था"। विशाल मिश्र की आवाज़, कुमार के बोल, और वीर समर्थ का संगीत। इस फ़िल्म से हिन्दी फ़िल्म जगत में क़दम रखने वाले संगीतकार वीर समर्थ आख़िर कौन हैं? इस गीत के चार दक्षिणी भाषाओं के संस्करण किन गायकों ने गाये? इस गीत की गायन प्रक्रिया में विशाल मिश्र ने क्या तरीका अपनाया? कोविड काल में जारी हुए इस गीत के बहाने विशाल ने संगीत में होते किस महत्वपूर्ण बदलाव की ओर इशारा किया है? जानिये कि मचलते-थिरकते गीतों के गीतकार कुमार ने किस संजीदगी से इस गीत को अंजाम दिया है। ये सब आज के इस अंक में।