Shri Ram katha

Sutradhar

Sutradhar brings to you ShriRam Katha based on the Ramayana composed by Maharshi Valmiki. We will cover stories from Shriram's birth till his killing of Ravan to rescue his beloved wife Sita. The series will start from Bal Kand and will end with Lanka Kand of Ramayan. Thanks to Akshaya Watve and Madhavi Todkar for their efforts in making this project happen. read less
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Episodes

रावण वध
05-10-2022
रावण वध
अपने पुत्रों, भाइयों और सभी प्रमुख महारथियों की मृत्यु के पश्चात रावण ने अत्यंत क्रोधित होकर वानर सेना पर आक्रमण कर उनके मध्य हाहाकार मचा दिया। रावण ने तमस अस्त्र का प्रयोग कर अनेक वानरों को धराशायी कर दिया। श्रीराम और लक्ष्मण ने वानरों को इस प्रकार गिरते हुए देखा और रावण का सामना करने का निश्चय किया। लक्ष्मण ने अपने बाणों से रावण पर प्रहार किये। दोनों के बीच घमासान युद्ध छिड़ गया। लक्ष्मण ने अपने बाणों से रावण के सारथी को मारकर रावण का धनुष तोड़ दिया। विभीषण ने अपने मुग्दर से रावण के रथ के घोड़ों को मार गिराया। इससे क्रोधित होकर रावण के एक भाला उठाया और अपने भाई पर प्रहार किया। लक्ष्मण ने अपने तीरों से उस भाले को तीन हिस्सों में काटकर गिरा दिया। रावण ने एक और भाला उठाकर फिर से विभीषण की ओर निशाना साधा। विभीषण के प्राण खतरे में देखकर लक्ष्मण ने रावण पर लगातार तीरों से प्रहार किये। रावण ने विभीषण को छोड़कर वह भाला जोर से लक्ष्मण जी की ओर फेंका। भाला लक्ष्मण के वक्षस्थल पर लगा और उसके प्रहार से वो मूर्छित हो गए। श्रीराम ने लक्ष्मण को मूर्छित होते देखा तो तुरंत ही उनके पास आए और अपने हाथों से लक्ष्मण जी की छाती पर लगा हुआ भाला बाहर निकाला। हनुमान जी और सुग्रीव को लक्ष्मण की सुरक्षा में नियुक्त कर वो रावण का सामना करने लगे। अपने रथ से विहीन रावण श्रीराम के बाणों का सामना नहीं कर सका और लंका वापस लौट गया। रावण के युद्धस्थल से जाने के बा श्रीराम लक्ष्मण जी के पास आए और उनका सर अपनी गोद में रखकर विलाप करने लगे। श्रीराम को विलाप करता देखकर वानरों के वैद्य और तारा के पिता सुषेण ने उनको सांत्वना देते हुए कहा की लक्ष्मण जी सिर्फ मूर्छित हुए हैं। उन्होंने हनुमानजी से जांबवान के बताए हुए द्रोणगिरि पर्वत पर जाकर वहाँ से सभी घाव भरने वाली विशल्यकर्णी और जीवनदायिनी संजीवनी, सौवर्णकर्णी और संधानकर्णी नामक जड़ी बूटियाँ लाने को कहा। हनुमानजी मन की गति से द्रोणगिरि पर्वत पहुँचे और सही जड़ी-बूटी ना पहचानने के कारण पूरा द्रोणगिरि पर्वत ही उठाकर लंका ले आए। सुषेण ने हनुमानजी द्वारा लाई हुई बूटियों से औषध तैयार की और लक्ष्मण जी को सुँघाई। औषध की गंध से लक्ष्मण जी की मूर्छा टूटी और उनके घाव भी भर गए।  रावण जब पुनः अपने रथ पर सवार युद्ध में उतरा तब इन्द्रदेव ने अपने सारथी मताली के साथ अपना रथ श्रीरामचन्द्र जी के लिए भेजा। मताली ने श्रीराम से देवराज इन्द्र के रथ पर सवार होकर रावण का सामना करने को कहा।  इन्द्र के रथ पर आरूढ़ श्रीराम और दशानन के बीच भयानक द्वन्द्व छिड़ गया। रावण ने श्रीराम पर नाग-अस्त्र से प्रहार किया जिससे उसके बाण भयानक नागों के रूप में परिवर्तित होकर श्रीराम की ओर बढ़े। उसका प्रतिकार करने के लिए श्रीराम ने गरुड़-अस्त्र का प्रयोग किया, जिसने सभी नागों को नष्ट कर दिया। रावण ने श्रीराम पर भाले से प्रहार किया जिसे श्रीराम ने मताली के साथ लाए हुए इन्द्र के अस्त्र से नष्ट कर दिया। श्रीराम ने अनेक बाणों से रावण पर प्रहार किये और उसके शरीर के अनेक अंगों को अपने बाणों से बींध दिया। श्रीराम भी रावण के बाणों से प्रहार से रक्त-रंजित हो चुके थे।  रावण को श्रीराम का सामना करने में असफल होते देख उसके सारथी ने रथ को युद्धस्थल से दूर ले जाने की सोची। उसके रथ घुमाते ही रावण ने उसे फटकार लगाते हुए रथ को पुनः युद्धस्थल की ओर ले जाने को कहा। श्रीराम ने रावण का रथ वापस आते हुए देखकर मताली से कहा कि लगता है रक्षसराज ने आज युद्ध में प्राण त्यागने का निश्चय कर लिया है। उन्होंने मताली को बिना किसी भय और व्यवधान के अपना रथ रावण की ओर ले जाने को कहा।  दोनों क बीच भयंकर युद्ध छिड़ गया। श्रीराम को अपनी विजय का निश्चय था और रावण को उसकी मृत्यु साक्षात दिख रही थी। दशानन ने राघव के रथ पर प्रहार किया परंतु उसके तीर इन्द्र के दैवी रथ से टकराकर गिर गए। श्रीराम ने रावण के रथ की ध्वजा को अपने बाणों से ध्वस्त कर दिया। रावण ने क्रोधित होकर श्रीराम के रथ के घोड़ों पर अनेक बाण चलाए परंतु वो दैवी घोड़े रावण के बाणों से भयभीत नहीं हुए। रावण ने श्रीराम पर अनेक मायावी अस्त्रों से प्रहार किया जिन्हे उन्होंने अपने दैवी अस्त्रों से काट दिया। रावण ने मताली पर कई बाण चलाए जिससे श्रीराम को अत्यंत क्रोध आया और  उन्होंने क्षुर नामक अस्त्र से रावण का सर धड़ से अलग कर दिया, परंतु उस कैट हुए सर के स्थान पर एक और सर प्रकट हो गया। श्रीराम ने फिर से दशानन का सर काट दिया और उसकी ग्रीवा से एक और सर निकल आया।  इस प्रकार रावण का अन्त होते नहीं प्रतीत हो रहा था, तब मताली ने श्रीराम से कहा कि रावण का अन्त करने के लिए ब्रह्मदेव के अस्त्र का प्रयोग करें। मताली के ऐसा कहने पर श्रीराम ने अगस्त्य ऋषि द्वारा उनको दिया हुआ ब्रह्मदेव द्वारा इन्द्र के लिए बनाया हुआ ब्रह्मास्त्र का आव्हान किया। श्रीराम ने अपने धनुष की प्रत्यंचा चढ़ाकर मंत्रोच्चारण करते हुए पूरी शक्ति के साथ रावण पर ब्रह्मास्त्र से प्रहार किया। ब्रह्मास्त्र के प्रहार से रावण का हृदय छलनी हो गया और उसके प्राण पखेरू उड़ गए।  रावण के प्राण निकलते ही सभी राक्षस डरकर इधर-उधर भागने लगे और वानर सेना ने श्रीराम का जयघोष किया। रावण के प्रकोप से प्रताड़ित देवताओं, गन्धर्वों, ऋषियों इत्यादि ने हर्ष के साथ श्रीराम की जय-जयकार की।  आज भी समस्त भारतवर्ष में श्रीराम द्वारा रावण वध की वर्षगांठ धर्म की अधर्म पर विजय के रूप में मनायी जाती है। प्रतिवर्ष आश्विन माह के शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि को दशहरा या विजय दशमी के रूप में मनाया जाता है।
कुम्भ-निकुम्भ वध
04-10-2022
कुम्भ-निकुम्भ वध
श्रीराम और लक्ष्मण के सचेत होने के बाद सुग्रीव ने वानर सेना को लंका नगरी में आग लगाने की आज्ञा दी। सुग्रीव की आज्ञा पाकर वानर सेना ने अपने हाथों में मशालें लेकर लंका नगरी में आग लगाना शुरू कर दिया। सभी नगर वासी राक्षसों में हाहाकार मच गया। तब रावण ने कुंभकर्ण के पुत्रों कुम्भ और निकुंभ के नेतृत्व में राक्षस सेना को वानर सेना से युद्ध करने भेजा। युद्ध प्रारम्भ होते ही महाबली अंगद ने कंपन नामक राक्षस को एक चट्टान के प्रहार से मार गिराया। यह देखकर कुम्भ ने अपने बाणों से वानर सेना पर आक्रमण कर दिया। कुम्भ के बाण लगने से द्विविदा आहत होकर गिर गया। अपने भाई को इस प्रकार आहत देखकर मैंदा ने कुम्भ पर आक्रमण किया, परंतु वह भी कुम्भ के बाणों से घायल होकर मूर्छित हो गया। अपने मामाओं को इस प्रकार पराजित होता देखकर महाबली अंगद ने कुम्भ को ललकारा। अंगद और कुम्भ के बीच घमासान युद्ध हुआ और अंततः अंगद कुम्भ के बाणों के प्रहार से आहत होकर मूर्छित हो गए। जब श्रीराम को अंगद के मूर्छित होने का समाचार मिला तो उन्होंने महाबली जांबवान के नेतृत्व में वानर सेना को कुम्भ का सामना करने के लिए भेजा। जांबवान, सुषेण और वेगदर्शी ने कुम्भ पर चट्टानों और वृक्षों से आक्रमण किया परंतु कुम्भ ने अपने तीरों से उनके प्रहारों को निष्फल कर दिया। तब वानरराज सुग्रीव ने अनेक वृक्षों को कुम्भ की ओर फेंका, जिन्हे कुम्भ ने अपने तीरों से नष्ट कर दिया। सुग्रीव ने क्रोध में आकर कुम्भ का धनुष तोड़ दिया। धनुष टूट जाने पर कुम्भ सुग्रीव की ओर लपका और अपनी मुष्टिका से कई बार सुग्रीव की छाती पर प्रहार किये। सुग्रीव ने भी कुम्भ की छाती पर अनेक बार मुष्टिका से प्रहार किये। कुम्भ एक भीषण गर्जना के साथ भूमि पर गिर गया और उसके प्राण निकल गए। अपने भाई को धराशायी होते देखकर निकुम्भ क्रोध से भरकर एक विशाल मुग्दर लेकर वानर सेना पर टूट पड़ा। पवनपुत्र हनुमान को अपने सामने देखकर उसने अपने मुग्दर से उनके वक्ष पर प्रहार किया। बजरंगबली के वक्ष से टकराकर मुग्दर सौ टुकड़ों में टूटकर बिखर गया। दोनों महाबालशाली योद्धाओं में बीच मल्लयुद्ध छिड़ गया। अंततः बजरंगबली ने निकुम्भ की गर्दन तोड़कर उसे यमलोक भेज दिया।
अतिकाया वध
03-10-2022
अतिकाया वध
अपने भाइयों की मृत्यु से रावण की पत्नी धन्यमलिनी का पुत्र अतिकाया, जिसे ब्रह्मदेव से देव और दानवों द्वारा ना मारे जा सकने का वरदान प्राप्त था, क्रोध से भर गया और उसने अपने रथ पर सवार होकर युद्धभूमि में प्रवेश किया। उसके धनुष की टंकार से चारों ओर कोलाहल मच गया। कुमुद, द्विविदा, मैंदा, नील और शरभ ने वृक्षों और चट्टानों से उस पर एक साथ प्रहार किया, जिन्हें अतिकाया ने अपने बाणों से ध्वस्त कर दिया। इस प्रकार जो भी उसके सामने आता उस पर प्रहार करते हुए वह श्रीराम के समक्ष पहुंचा और उन्हें युद्ध के लिए ललकारा। उसकी ललकार का उत्तर लक्ष्मण ने दिया और अपना धनुष हाथ में लेकर उसके सामने आ खड़े हुए। अतिकाया और लक्ष्मण दोनों धनुर्विद्या में निपुण थे। उन दोनों के बीच भयानक द्वन्द्व छिड़ गया। लक्ष्मणजी ने अतिकाया पर आग्नेयास्त्र से प्रहार किया जिसे देखकर अतिकाया ने सूर्यास्त्र से प्रहार किया और दोनों अस्त्र हवा में एक-दूसरे से टकराकर नष्ट हो गए। अतिकाया ने ऐशिका अस्त्र का आव्हान किया, जिसका सामना लक्ष्मण ने ऐंद्रास्त्र से किया। अतिकाया के यमयास्त्र को लक्ष्मण ने वायव्यास्त्र से नष्ट कर दिया। दोनों के बीच बाणों का आदान-प्रदान चलता रहा और दोनों ही योद्धा हारते हुए नहीं दिख रहे थे। तब वायुदेव ने लक्ष्मण जी के कान में कहा कि इसकी शक्तियां ब्रह्मदेव के वरदान से हैं, और इसका अन्त भी ब्रह्मदेव के अस्त्र से ही संभव है। वायुदेव की बात मानकर लक्ष्मणजी ने ब्रह्मास्त्र का आव्हान किया और अतिकाया पर प्रहार किया। अतिकाया ने अपनी ओर आते हुए ब्रह्मास्त्र को रोकने हेतु उस पर कई बाणों से प्रहार किया, परंतु अतिकाया के बाणों का ब्रह्मास्त्र पर कोई असर नहीं हुआ। अतिकाया ने भाले, फरसे, हथौड़े, तलवार इत्यादि से ब्रह्मास्त्र को रोकने का प्रयास किया परंतु वह ब्रह्मदेव के अस्त्र को नहीं रोक पाया और ब्रह्मास्त्र के प्रहार से उसका सर धड़ से अलग होकर जमीन पर गिर गया। इस प्रकार लक्ष्मणजी ने रावण के प्रतापी पुत्र विशालकाय अतिकाया का वध कर वानरसेना और देवगणों में खुशी का संचार किया।
त्रिषिरा वध
02-10-2022
त्रिषिरा वध
देवांतक की मृत्यु से त्रिषिरा ने क्रोध में भरकर नील पर तीरों की वर्षा कर दी। नील ने अपना आकार बढ़ाकर उन तीरों का बड़ी ही वीरता के साथ सामना किया। जैसे ही नील उन तीरों के प्रभाव से मुक्त हुए उन्होंने एक विशाल चट्टान से महोदर और उसके हाथी सुदर्शन को धराशायी कर दिया। महोदर के धराशायी होने पर त्रिषिरा ने हनुमान जी पर अपने बाणों से आक्रमण कर दिया। हनुमान जी ने क्रोध में आकर त्रिषिरा के रथ के घोड़ों को मार गिराया। इस प्रकार रथ से विहीन हो जाने पर त्रिषिरा ने एक भाले से हनुमान जी पर प्रहार किया। हनुमान जी ने उसे हवा में ही पकड़कर अपनी जांघों पर रखकर तोड़ दिया। उसके बाद त्रिषिरा ने एक तलवार से हनुमानजी पर प्रहार किया। तलवार के प्रहार से बचते हुए बजरंगबली ने अपनी हथेली से त्रिषिरा की छाती पर जोर से वार किया, जिससे उसके हाथ से तलवार छूट गई और वो दूर जा गिरा। जैसे ही त्रिषिरा ने होश सम्हाला और हनुमानजी पर अपनी मुष्टिका से प्रहार करने के लिए लपका पवनपुत्र ने अपने एक हाथ से उसका मुकुट पकड़कर उसकी ही तलवार से उसका सर धड़ से अलग कर दिया।
देवांतक वध
02-10-2022
देवांतक वध
नरांतक के धराशायी होते ही देवांतक, त्रिषिरा और महोदर एक साथ महाबली अंगद पर टूट पड़े। अंगद ने चट्टानों और वृक्षों से तीनों पर प्रहार किये परंतु उन महाबली राक्षसों ने अंगद के प्रहारों को निष्फल कर अंगद पर मुग्दर, और बाणों से78 आक्रमण कर दिया। अंगद को एक साथ तीन राक्षस महारथियों से युद्ध करते हुए देखकर हनुमान जी और नील वहाँ आ पहुँचे। नील ने एक बड़ी चट्टान से त्रिषिरा पर प्रहार किया जिसे त्रिषिरा ने अपने बाणों से टुकड़े-टुकड़े कर दिया। देवांतक मुग्दर लेकर पवनपुत्र की ओर बढ़ा। उसे अपनी ओर आता देखकर बजरंगबली ने उसकी ओर छलांग लगाते हुए इन्द्र के वज्र के समान शक्तिशाली अपनी मुष्टिका से उसके सर पर प्रहार किया। देवांतक का सर फट गया और उसकी जिह्वा बाहर निकल आई।
नरांतक वध
30-09-2022
नरांतक वध
कुंभकर्ण के रणभूमि में धराशायी होने के बाद रावण ने अपने पुत्रों अतिकाया, त्रिषिरा, देवांतक और नरांतक को अपने भाइयों महोदर और महापार्श्व के साथ वानर सेना से युद्ध करने के लिए भेजा। एक श्वेत अश्व पर सवार नरांतक ने अपने भाले से वानर सेना में हाहाकार मचा दिया। यह देखकर सुग्रीव ने अंगद को नरांतक का सामना करने के लिए भेजा। अंगद ने नरांतक के सामने आकर उसे युद्ध के लिए ललकारा। नरांतक ने क्रोधित होकर अपने भाले से अंगद की छाती पर प्रहार किया। अंगद की वज्र के समान छाती से टकराकर नरांतक का भाला टूट गया। उसके बाद अंगद ने अपने हाथों से नरांतक के घोड़े पर जोर से प्रहार कर उसे धराशायी कर दिया। नरांतक ने अपनी मुष्टिका से अंगद के सर पर जोर से प्रहार किया जिससे उनके मस्तक से रक्त प्रवाह होने लगा। उसके बाद महाबली अंगद ने अपनी पूरी शक्ति से नरांतक के वक्षस्थल पर मुष्टिका से प्रहार कर उसे यमलोक भेज दिया।
इंद्रजीत का मायायुद्ध
29-09-2022
इंद्रजीत का मायायुद्ध
अंगद द्वारा अपना रथ तोड़े जाने और सारथी और घोड़ों के मारे  जाने से मेघनाद आग बबूला हो गया और युद्धस्थल से अदृश्य हो गया। ब्रह्मदेव के वरदान के कारण कोई भी मेघनाद को देख नहीं पा रहा था। उसने अपने तीरों से वानर सेना में हाहाकार मचा दिया था और दिखाई ना देने का कारण वानर सेना में कोई भी उस पर प्रहार नहीं कर पा रहा था। जब श्रीराम और लक्ष्मण जी उसका सामना करने आए तो उसने भयानक बाणों से उन पर आक्रमण किया। ये बाण उसके धनुष से छूटने पर सर्प में बदल जाते और श्रीराम और लक्ष्मण जी के शरीर में अंदर तक प्रवेश कर जाते। इस प्रकार नागपाश में बंध जाने पर श्रीराम और लक्ष्मण जी दोनों मूर्छित होकर गिर गए और समस्त वानर सेना में कोलाहल मच गया। मेघनाद ने लंका वापस जाकर अपने पिता को बताया की उसने दोनों दशरथ पुत्रों का वध कर दिया है। इधर विभीषण ने जब वानर सेना को शोकाकुल देखा और मूर्छित पड़े श्रीराम और लक्ष्मण जी को देखा तो वानर सेना को सांत्वना देते हुए उन्हें बताया की ये दोनों अभी जीवित हैं। इनको किसी सुरक्षित स्थान पर ले जाकर उपचार का प्रबन्ध करो। विभीषण की बात सुनकर वानर सेना शान्त हुई और वो दोनों की मूर्छा भंग करने के उपाय सोचने लगे। उसी समय तेज हवा चलने लगी और वहाँ गरुड़ देव प्रकट हुए। गरुड़ देव को देखते ही श्रीराम और लक्ष्मण जी को जकड़े हुए सभी नाग भाग खड़े हुए और नागों के पाश से मुक्त होते ही दोनों की मूर्छा टूट गयी। गरुड़ देव श्रीराम और लक्ष्मणजी को नागपाश से मुक्त करने के बाद वैकुंठलोक को चले गए।
रामदूत अंगद
28-09-2022
रामदूत अंगद
लंका को चारों ओर से घेर लेने के बाद श्रीराम ने रावण को अपनी भूल सुधारने के एक और मौका देने के उद्देश्य से महाबली अंगद को दूत बनाकर भेजा। जिस प्रकार हनुमानजी ने लंका में आग लगाकर राक्षस सेना को वानर सेना के सामर्थ्य का परिचय दिया था, अंगद भी वैसा ही कुछ करने का उद्देश्य लेकर लंका पहुँचे। लंका की राजसभा में अंगद ने रक्षसराज रावण से सीता माता को वापस लौटाकर श्रीराम से संधि करने की बात कही। अंगद ने श्रीराम के पराक्रम का गुणगान करते हुए रावण से अपनी जान बचाने के लिए युद्ध न करने का सुझाव दिया। रावण ने अपनी सभा में बैठे सभी राक्षसों को अंगद को पकड़ने का आदेश दिया। अंगद ने पहले तो सभी राक्षसों को बिना किसी विरोध के अपने समीप आने दिया, फिर अपने बल का प्रदर्शन करते हुए उन्होंने सभी राक्षसों को एक ही झटके में दूर फेंक दिया और राजमहल की छत तोड़कर जोर से अपने नाम की गर्जना की और आसमान में छलांग लगा दी। वहाँ उपस्थित कोई भी राक्षस कुछ नहीं कर सका।
रावण के गुप्तचर
28-09-2022
रावण के गुप्तचर
वानर सेना के समुद्र पार करने का समाचार सुनकर रावण ने श्रीराम की सेना के सामर्थ्य का अनुमान लगाने के लिए अपने दो गुप्तचरों शुक और सारण को भेजा।   दोनों गुप्तचर वानर का वेश धारण कर वानर सेना में घुस गए, परंतु विभीषण ने उनको पहचान लिया और उन्हें पकड़कर श्रीराम के सामने प्रस्तुत किया।   श्रीराम ने दोनों को दंड न देकर छोड़ दिया और रावण के पास जाकर अपना संदेश देने के लिए कहा। श्रीराम ने कहा, “जाओ अपने स्वामी दशानन को कह दो कि श्रीराम अपने भाई लक्ष्मण के साथ सीता को वापस ले जाने के लिए आए हैं और सुग्रीव की वानर सेना के सहयोग से वो उसका वध कर अपनी पत्नी को वापस लेकर ही यहाँ से जाएंगे।“
श्रीराम की शक्तिपूजा
26-09-2022
श्रीराम की शक्तिपूजा
रामायण के बंगाल में प्रचलित एक संस्करण के अनुसार रावण से युद्ध में विजय प्राप्त करने के लिए भगवान श्रीराम ने शक्तिपूजा करने का निर्णय लिया। देवी आदिशक्ति की पूजा के लिए १०८ नीले कमल के फूलों को एकत्र किया गया। पूजा की समाप्ति के समय जब श्रीराम ने १०८वाँ कमल का पुष्प देवी को समर्पित करना चाहा तो वह पुष्प पूजा स्थल में नहीं था। श्रीराम अत्यंत व्याकुल हुए। तभी श्रीराम को लगा कि लोग उन्हें कमल-नयन भी कहते हैं। ऐसा सोचकर श्रीरामचन्द्र जी ने कमल के स्थान पर अपना एक नेत्र देवी को समर्पित करने के उद्देश्य एक तीर हाथ में लिया। जैसे ही रामचन्द्र जी तीर अपने नेत्र तक ले गए, देवी आदिशक्ति ने वहाँ प्रकट होकर उन्हें रोक लिया और उनकी भक्ति से प्रसन्न होकर उन्हें रावण पर विजय का वरदान प्रदान किया।
वाल्मीकि जी को श्रीरामकथा सुनाने की प्रेरणा
10-08-2022
वाल्मीकि जी को श्रीरामकथा सुनाने की प्रेरणा
रामायण के रचयिता महर्षि वाल्मीकि को आदिकवि अर्थात प्रथम कवि भी कहते हैं और उनके द्वारा रचितश्रीरामकथा को प्रथम महाकाव्य। देखिए कैसे मिली वाल्मीकि जी को रामायण की रचना करने की प्रेरणा।एक बार तपस्वी वाल्मीकि ऋषि की भेंट तीनों लोकों में भ्रमण करने वाले त्रिलोकज्ञाता देवर्षि नारद ने हुई।वाल्मीकि जी ने नारद मुनि से पूछा, “देवर्षि! इस समय विश्व में गुणवान, वीर्यवान, धर्मज्ञ, कृतज्ञ,सत्यवादी, धर्मानुसार आचरण करने वाले, प्राणिमात्र के हितैषी, विद्वान, समर्थ, धैर्यवान, क्रोध कोवश में करने वाले, तेजस्वी, ईर्ष्या से शून्य और युद्ध में देवताओं को भी भयभीत करने वाले कौनहैं। हे महर्षि! क्या आप किसी ऐसे पुरुष को जानते हैं? कृपा कर मुझे उनके विषय में बतायें।“वाल्मीकि जी की बात सुनकर त्रिकालदर्शी नारद मुनि प्रसन्न हुए और बोले, “हे मुनिवर! आपने जिनगुणों की बात कही है, वो सभी एक पुरुष में मिलन अत्यंत दुर्लभ है। किन्तु मैं आपको ऐसे एकगुणवान पुरुष के विषय में बताता हूँ। ध्यान से सुनिए।“ऐसा कहकर नारद मुनि ने ऋषि वाल्मीकि को इक्ष्वाकु वंश में जन्मे श्रीरामचन्द्र का परिचय देते हुएहुए उनके जीवन की कथा संछिप्त में सुनाई। उन्होंने बताया किस प्रकार श्रीराम का जन्म अयोध्या मेंमहाराज दशरथ के पुत्र के रूप में हुआ, कैसे उन्होंने ब्रह्मर्षि विश्वामित्र के यज्ञ में उनकी सहायताकी, किस प्रकार उनका विवाह मिथिला नरेश महाराज जनक की पुत्री जानकी से हुआ और कैसे उनकोअपनी सौतेली माता कैकेयी के कारण वनवास में जाना पड़ा। नारद मुनि ने वाल्मीकि जी को रावणद्वारा सीता जी के अपहरण, सीता जी की खोज में श्रीराम और लक्ष्मण जी की हनुमान जी से भेंट,उनकी सुग्रीव से मित्रता और सुग्रीव की सहायता से सीता जी की खोज, नल द्वारा समुद्र पर पुलबंधे जाने और उसके पश्चात लंका पर आक्रमण कर दसग्रीव रावण का वध करने की कथा सुनाई।देवर्षि नारद से यह वृत्तान्त सुनने के पश्चात वाल्मीकि जी ने अपने शिष्य भारद्वाज के साथ उनकापूजन किया। उसके बाद नारद मुनि विदा लेकर अकाशमार्ग में चले गए।नारद मुनि को विदा करने के बाद वाल्मीकि ऋषि अपने शिष्य के साथ गंगा नदी से थोड़ी दूर परस्थित तमसा नदी के तट पर पहुँचे, और नदी के शीतल जल में स्नान कर वहाँ विचरण करने लगे।उसी समय वाल्मीकि जी ने वन में विहार करते हुए मधुर ध्वनि करने वाले क्रौंच पक्षी का एक जोड़ादेखा। इतने में एक बहेलिये ने उनमें से नर पक्षी को मार दिया। जिसे देखकर मादा पक्षी करुण स्वरमें विलाप करने लगी। इस प्रकार विलाप करती हुई क्रौंची को देखकर वाल्मीकि जी के मुख सेअनायास ही यह शब्द निकले –मा निषाद प्रतिष्ठां त्वमगमः शाश्वतीः समाः।यत्क्रौंचमिथुनादेकमवधीः काममोहितम् ॥अर्थात हे बहेलिये! तूने जो इस कामोन्मत्त क्रौंच पक्षी को मारा है, इसलिए अनेक वर्षों तक तू इस वनमें मत आना अथवा तुझे सुख शान्ति न मिले। ऐसा कहने के बाद वाल्मीकि जी ने सोचा इस पक्षी के शोक से शोकाकुल होकर उनके मुख से यहक्या निकल गया और उन्होंने अपने शिष्य भारद्वाज को भी यह बताया और कहा, “देखो, शोकाकुलहोकर मेरे मुख से यह क्या निकला? इसमें चार पाद हैं और प्रत्येक पाद में समान अक्षर हैं और यहवीणा पर भी गाया जा सकता है। शोक के कारण मेरे मुख से निकलने के कारण इसे श्लोक कहाजाएगा और इसके कारण मेरा यश बढ़ेगा।“ भारद्वाज ने अति प्रसन्न होकर वह श्लोक कंठाग्र करलिया और दोनों गुरु-शिष्य आश्रम वापस आ गए।एक दिन जगत-पितामह ब्रह्मदेव वाल्मीकि ऋषि के आश्रम में पधारे। ब्रह्मदेव को देखकर वाल्मीकिजी ने उनका आदर-सत्कार किया और उनका यथोचित पूजन कर उनको आसन ग्रहण करने के लिएकहा। ब्रह्मदेव ने वाल्मीकि जी को अपने समीप आसन पर विराजने को कहा। उस समय भीवाल्मीकि जी क्रौंच के कष्ट से व्याकुल होकर बहेलिये के लिए निकले शब्द ही सोच रहे थे। उनकोइस प्रकार चिंताग्रस्त देखकर ब्रह्मदेव ने कहा, “ऋषिश्रेष्ठ! यह तो तुमने श्लोक ही बना दिया। मेरीही प्रेरणा से यह आपके मुख से निकल है। अब इसके मध्यम से ही तुमने नारद के मुख से जोरामकथा सुनी है, उसका वर्णन करो। मेरी कृपा से श्रीरामचन्द्र, लक्ष्मण जी और जानकी जी के प्रत्यक्षतथा गुप्त सभी वृत्तान्त तुमको प्रत्यक्ष ही दिखेंगे और इस काव्य में तुम्हारे द्वारा कही गयी कोई भइबात मिथ्या नहीं होगी। जब तक इस धरती में पहाड़ और नदियां रहेंगी, तब तक इस लोक मेंश्रीरामचन्द्र की कथा का प्रचार रहेगा।“ ऐसा कहकर ब्रह्मदेव वाल्मीकि जी को आशीर्वाद देकर वहाँ सेअंतर्ध्यान हो गए।उसके बाद महर्षि वाल्मीकि ब्रह्मदेव के आशीर्वाद से योगबल द्वारा श्रीराम के जीवन को इस प्रकारदेखने लगे मानो वह उनके समक्ष ही घटित हो रहा हो। इस प्रकार वाल्मीकि जी ने चौबीस हजारश्लोक और पाँच सो सर्ग की रचना की। अपनी रचना सम्पूर्ण करने के बाद महर्षि सोचने लगे कीअब यह महाकाव्य किसे सुनाएं। महर्षि वाल्मीकि ऐसा सोच ही रहे थे कि कुश और लव ने आकरउनके चरण स्पर्श किये। वाल्मीकि जी ने उन दोनों बालकों को अपने द्वारा रचित वह काव्य कंठस्थकराया और उन्होंने उसका नाम “पौलस्त्यवध” रखा।कुश और लव ऋषियों और संतों के समक्ष वह काव्य अत्यंत मधुर वाणी में गाते, जिसे सुनकर वोभाव-विभोर हो जाते। एक बार राजमार्ग से जाते हुए श्रीरामचन्द्र ने उनको देखा और अपने साथराजमहल ले आए। उसके बाद उन्होंने राजसभा में अपने भाइयों भरत, लक्ष्मण और शत्रुघ्न तथा सभीमंत्रीगणों के समक्ष उनका गीत गाने के लिए कहा।और इस प्रकार महर्षि वाल्मीकि द्वारा रचित रामायण महाकाव्य को श्रीराम के ही पुत्रों ने भरी सभामें उनके ही समक्ष प्रस्तुत किया।