भ्रुशुंडी ऋषि की कथा | Story of Bhrushundi Rishi

इतिहास पुराण की कथाएं Itihas Puran Ki Kathaye

30-11-2022 • 8 mins

भ्रुशुंडी गणेश मन्दिर महाराष्ट्र के विदर्भ क्षेत्र में स्थित गणपति के अष्टविनायक मंदिरों में एक है। देखिये किस प्रकार अपने भक्त के नामजप से प्रसन्न होकर गणपति ने उसे साक्षात अपना ही स्वरूप प्रदान कर दिया।  दंडकारण्य नाम के एक घने जंगल में नामा नाम का एक मछुआरा और उसका परिवार रहता था। नामा मछुआरा जंगल के रास्ते से गुजरने वाले लोगों को लूट कर उनकी हत्या कर देता था और उसी से अपना और अपने परिवार का पेट पालता था।  एक दिन मुद्गल ऋषि एक हाथ में छड़ी और दूसरे हाथ में कमंडल लिए जंगल के उस रास्ते से गुजर रहे थे। नामा मछुआरे ने उन्हे देखा और उन्हे लूटने के लिए आगे बढ़ा। उनको मारने के लिए जैसे ही उसने अपनी कुल्हाड़ी उठाई वह उसके हाथ से फिसलकर गिर गयी। उसने फिर से कुल्हाड़ी उठाई पर वार करने से पहले ही वह उसके हाथ से छूटकर गिर गयी। मछुआरे को कुछ समझ नहीं आ रहा था और वो अचंभित होकर अपनी कुल्हाड़ी को देख रहा था।   उसको इस प्रकार देखकर मुद्गल ऋषी बोले, "अरे! मारो मुझे। क्या हुआ? हाथ से कुल्हाड़ी क्यों फिसल रही है?" यह सुनकर नामा को और क्रोध आया। एक बार फिर उसने कुल्हाड़ी उठाई। पर वो इस बार भी वार नहीं कर सका। आखिरकार अपनी हार स्वीकार कर वो ऋषि के पैरों पर गिर पड़ा और क्षमा याचना करने लगा, "महात्मन! मुझ से बड़ी भूल हो गई। मुझे क्षमा करें।" ऋषि ने उस से पूछा, "तुम ऐसे लोगोंकी हत्या क्यों कर रहे हो। इस पाप से छुटकारा कैसे पाओगे?” ऋषि का प्रश्न सुनकर नामा ने उत्तर दिया। "ऋषिवर! मैं अकेला ही पापी नहीं हूं। मेरे माता-पिता, मेरी पत्नी और मेरे बच्चे भी इसके भागीदार हैं। उन्हे पालने के लिए ही तो मैं ये सब करता हूं।"  उसका ये उत्तर सुनकर ऋषि बोले, "सच में तुम्हें ऐसा लगता है? जाओ जाकर उनसे एक बार पूँछ कर तो आओ।" नामा घर आया और उसने परिवार के लोगों से पूछा कि वो सब उसके पाप में भागीदार बनेंगे। तो सभी ने उसके पाप का भागी होने सें इन्कार कर दिया। उन्होंने कहा, "हमारा पेट पालना तो तुम्हारा कर्तव्य है। वो पूरा करने के लिए तुम क्या करते हो इससे हमारा क्या मतलब। उसकी जिम्मेदारी हम क्यों उठाएँ। तुम तुम्हारा कर्तव्य निभा रहे हो तो उसकी भागीदारी भी तुम्हारी ही हुई।"  ये बात सुनकर नामा मछुआरे को बड़ा दुःख हुआ। वापस आकर वो मुद्गल ऋषि के चरणों मे गिर पड़ा और बोला, "स्वामी! इस पाप से मुक्ति पाने का रास्ता दिखाएं।" उसने ऐसी विनती की, तो ऋषी ने उसे सामने के कुंड में स्नान कर वापस आने को कहा। नामा के स्नान कर वापस आने के बाद मुद्गल ऋषि ने अपने पास पड़ी एक लकड़ी को जमीन में गाड़ दिया उसे उस लकड़ी के सामने बैठने को कहा। ऋषि ने उसे वहीं बैठकर 'श्री गणेशाय नमः” मंत्र का जाप करने को कहा और बोले, "इस लकड़ी का रूपान्तरण जब हरे भरे वृक्ष में हो जाएगा तब तुम्हारे पापों का नाश होगा। तब तक तुम यहीं बैठकर गणपति मंत्र का जाप करते हुए तपस्या करते रहना।" इतना कह कर मुद्गल ऋषि वहां से चले गए।