द्वारका में पारिजात वृक्ष
इस कहानी के पहले भाग में हमने जाना कि किस तरह नारद मुनि के द्वारका आने पर एक के बाद एक कई घटनाओं का क्रम बँधा, जिस कारण श्रीकृष्ण ने सत्यभामा को अमरावती से पारिजात वृक्ष लाने और उसे सत्यभामा के बाग में लगाने का वचन दिया। श्रीकृष्ण की पारिजात हरण लीला के इस भाग में हम जानेंगे कि श्रीकृष्ण किस तरह अपने वचन का पालन करते हैं।
श्रीकृष्ण से विदा लेकर नारद मुनि महादेव की प्रतिष्ठा में इन्द्र द्वारा स्वर्गलोक में आयोजित एक समारोह में गए। नारद मुनि अन्य देवों, गन्धर्वों, अप्सराओं और देवर्षियों के साथ मिलकर उमा-महेश्वर की आराधना करने लगे। जब समारोह का अन्त हुआ और सभी अतिथि अपने-अपने लोकों में प्रस्थान कर गए, तब नारद मुनि सिंहासन पर बैठे इन्द्र के पास गए। इन्द्र ने नारद मुनि को प्रणाम किया और अपने समीप एक स्थान पर बैठने का निमंत्रण दिया। हालाँकि नारद मुनि ने खड़े रहकर ही कहा, "देवराज! आज मैं श्रीकृष्ण का दूत बनकर आपके समक्ष आया हूँ। मैं द्वारकापुरी से आपके लिए उनका एक सन्देश लेकर यहाँ उपस्थित हुआ हूँ।"