सत्यवती का विवाह | Satyavati Ka Vivah

इतिहास पुराण की कथाएं Itihas Puran Ki Kathaye

25-01-2023 • 9 mins

एक दिन महाराज शान्तनु गंगा नदी के समीप विचरण कर रहे थे और उन्होंने देखा कि एक किशोर आयु के बालक ने अपनी धनुर्विद्या से गंगा नदी के प्रवाह को रोक दिया था। महाराज शान्तनु उसकी ऐसी निपुणता को देखकर आश्चर्यचकित हुए और उससे उसका परिचय पूछा। उस समय देवी गंगा ने वहाँ प्रकट होकर महाराज शान्तनु को उस बालक का परिचय देते हुए कहा, “महाराज! आज मैं आपका पुत्र देवव्रत आपको सौंपती हूँ। इसने ब्रह्मर्षि वसिष्ठ के मार्गदर्शन में वेदों का अध्ययन किया है और धनुर्विद्या की शिक्षा स्वयं भगवान परशुराम से प्राप्त की है। यह आपका पुत्र आपके कुरुवंश का उत्तराधिकारी बनने के लिए सर्वथा योग्य है।” ऐसा कहकर देवी गंगा नदी में विलीन हो गईं और महाराज शान्तनु अपने पुत्र को अपने साथ राजमहल ले आए।    देवव्रत सभी प्रकार की विद्याओं में निपुण थे और महाराज शान्तनु को अपने पुत्र पर बड़ा गर्व था। देवव्रत से प्रभावित होकर महाराज शान्तनु ने उसे अपना उत्तराधिकारी बनाकर राजसूय यज्ञ का आयोजन किया। युद्धकला में पारंगत देवव्रत ने अपने पिता के यज्ञ के लिए विश्व विजय का अभियान किया और सभी राजाओं को हस्तिनापुर के अधीन कर दिग्विजय का महान कार्य सम्पन्न किया। महाराज शान्तनु युवराज देवव्रत को पाकर स्वयं को धन्य समझते थे और उसे राज्य का समस्त कार्यभार सौंपने का निर्णय कर चुके थे।    एक दिन महाराज शान्तनु यमुना नदी के समीप विचरण कर रहे थे कि उनका ध्यान एक मानमोहिनी गन्ध की ओर आकृष्ट हुआ। उस गन्ध के स्रोत को खोजते हुए उनकी भेंट मछुआरे की कन्या सत्यवती से हुई। सत्यवती की दैवी सुन्दरता को देखकर महाराज शान्तनु का मन मोहित हो गया और वो उसके पास जाकर बोले, “देवी! कौन हो तुम? तुम्हारे रूप को देखकर तो लगता है कि तुम स्वर्ग की कोई अप्सरा हो और तुम्हारे शरीर से आने वाली यह मोहक गन्ध भी इस लोक से परे है।”