गरुड़ की जन्मकथा | Story of Garuda's Birth

इतिहास पुराण की कथाएं Itihas Puran Ki Kathaye

16-11-2022 • 7 mins

अपने नाग पुत्रों की सहायता से कद्रू ने छलपूर्वक विनता से बाजी जीत ली और विनता उसकी दासी बनकर रहने लगी। अपने पहले पुत्र अरुण के शाप के कारण दासत्व का जीवन व्यतीत करती हुई विनता उस शाप से मुक्ति पाने के लिए अपने दूसरे पुत्र के जन्म की प्रतीक्षा करने लगी।   समय आने पर विनता के दूसरे अंडे से महाशक्तिशाली गरुड़ पैदा हुए। उनकी शक्ति, गति, दीप्ति और वृद्धि विलक्षण थीं। आँखे बिजली की तरह पीली और शरीर अग्नि के समान तेजस्वी था। जब वो अपने विशालकाय पंख फड़फड़ाकर आकाश में उड़ते तो लगता स्वयं अग्निदेव आ रहे हैं। जब गरुड़ ने अपनी माता को नागमाता की दासी के रूप में देखा तो उनसे इसका कारण पूछा। विनता ने गरुड़ को कद्रू के साथ लगी बाजी के विषय में बता दिया।    गरुड़ ने अपनी माता को इस शाप से मुक्त कराने की ठान ली और नागों के पास जाकर बोले,"मेरी माता को दासत्व से मुक्त करने के बदले में तुम्हे क्या चाहिए?" नागों ने बहुत सोच विचार करने के बाद गरुड़ से कहा,"हमारी माता के शाप के कारण हम जनमेजय के यज्ञ कुंड में भस्म हो जायेंगे। इससे हमे बचाने के लिए तुम हमारे लिए देवलोक से अमृत लेकर आ जाओ। अगर तुम देवलोक से अमृत लाने में सफल हो गए तो तुम्हारी माता दासत्व से मुक्त हो जाएँगी।"   गरुड़ देव ने नागों की बात मान ली और अमृत लेने के लिए स्वर्गलोक की और निकल पड़े। इन्द्र और अन्य देवताओं को जब इस बात का पता चला की गरुड़ अमृत लेने के लिए आ रहे हैं तो उन्होंने अमृत की रक्षा करने के लिए गरुड़ का सामना करने का निश्चय किया; परन्तु परम प्रतापी गरुड़ के सामने उनकी एक ना चली। गरुड़ ने अपने प्रहारों से इन्द्र समेत सभी देवताओं को मूर्छित कर दिया और अमृत तक पहुँच गए।    गरुड़ जब अमृत पात्र लेकर आसमान में उड़े जा रहे थे तब भगवान् विष्णु ने उन्हें दर्शन दिए और उनको पूछा,"हे महाप्रतापी गरुड़! तुमको अमृत पीना है तो इस पात्र से अमृत पी लो, पूरा पात्र लेकर जाने की क्या आवश्यकता है?" गरुड़ ने भगवान् विष्णु को उत्तर दिया,"मुझे ये अमृत स्वयं के लिए नहीं चाहिए अपितु मेरी माता को शाप से मुक्ति दिलाने के लिए चाहिए।"   गरुड़ के मन में अमृत के लिए कोई भी लालच ना देखकर भगवान् विष्णु अत्यंत प्रसन्न हुए और उन्होंने गरुड़ से एक वर माँगने को कहा। गरुड़ ने कहा,"भगवान्! आप मुझे बिना अमृत पान के ही अमर कर दीजिये और मेरे प्रतिबिम्ब को अपनी ध्वजा में स्थान दीजिये।" भगवान् ने तथास्तु कहकर गरुड़ की इच्छा पूरी कर दी।