नरकासुर वध | Narkasur

इतिहास पुराण की कथाएं Itihas Puran Ki Kathaye

23-10-2022 • 8 mins

भूदेवी का पुत्र नरकासुर अत्यंत पराक्रमी था जिससे देवता भी भयभीत रहते थे। इन्द्र से शत्रुता के चलते वह देवताओं और ऋषियों के प्रतिकूल आचरण करता था और उनके धार्मिक अनुष्ठानों में विघ्न डालता रहता था। भूमिपुत्र होने के कारण भौम नाम से भी जाने जाने वाले उस असुर ने एक बार हाथी का वेश धारण कर त्वष्टा की पुत्री कशेरु का अपहरण कर अपने राज्य प्राग्ज्योतिषपुर ले गया। उसने अनेक देवताओं, मनुष्यों और गन्धर्वों की कन्याओं और रत्नों का अपहरण कर लिया था।  इस प्रकार हरण की हुई सोलह हजार एक सौ स्त्रियों को वह मणिपर्वत पर बनायी हुई अलका नगरी में मुर नामक दैत्य के संरक्षण में रखता था। मुर अपने दस पुत्रों और अन्य अनेक राक्षसों के साथ प्राग्ज्योतिष की रक्षा करता था। ब्रह्मदेव की तपस्या कर उसने वर प्राप्त किया कि उसका वध केवल उसकी माता की इच्छा के अनुरूप हो। इस प्रकार वर प्राप्त करने के बाद नरक और भी उन्मत्त हो गया और उसने देवमाता अदिति का भी तिरस्कार किया और उनके दैवी कुण्डल चुरा ले गया।  नरकासुर से संतप्त होकर एक दिन देवराज इन्द्र अपने दैवी वाहन ऐरावत हाथी पर आरूढ़ होकर द्वारकापुरी पधारे और श्रीकृष्ण, बलराम और उग्रसेन से यथोचित सत्कार ग्रहण करने के बाद बोले, “देवकीनंदन! नरक नामक एक राक्षस ब्रह्मदेव से वरदान पाकर घमण्ड से भर गया है। उस दैत्य ने देवमाता अदिति के कुण्डल हर लिए हैं और वह प्रतिदिन धर्मात्मा ऋषियों और देवताओं में विरोध में ही लगा रहता है। अतः तुम अवसर देखकर उस पापात्मा से इस लोक का उद्धार करो।“  इन्द्र ने अपने साथ आए विनतानन्दन गरुड़ के गुणगान करते हुए कहा, “आप इन अन्तरिक्षचारी गरुड़ पर आरूढ़ होकर प्राग्ज्योतिष जाएं और उस पापी का संहार करें।“  इस प्रकार देवराज इन्द्र की बात को सुनकर श्रीकृष्ण ने नरकासुर का वध करने की प्रतिज्ञा की और नरकासुर की माता भूदेवी की अवतार देवी सत्यभामा के साथ गरुड़ पर आरूढ़ होकर नरक का वध करने के लिये प्राग्ज्योतिष की ओर चल पड़े।    प्राग्ज्योतिष के द्वार पर पहुँचकर श्रीकृष्ण ने अपने शारंग धनुष की प्रत्यंचा चढ़ाकर टंकार की। उस ध्वनि को सुनकर क्रोध में भरकर मुर ने उनपर हीरे और स्वर्ण से जड़ित आसुरी शक्ति से प्रहार किया जिसे श्रीकृष्ण के अपने बाण से नष्ट कर दिया। उसके बाद मुर एक गदा हाथ में लेकर श्रीकृष्ण की ओर दौड़ा। श्रीकृष्ण ने अपने अर्द्धचन्द्र बाण के प्रहार से उस गदा को भी नष्ट कर दिया और फिर एक भाले से उस दैत्य का सर धड़ से अलग कर दिया।  मुर को मारने के बाद श्रीकृष्ण आगे बढ़े तो उनका सामना प्राग्ज्योतिष के पहरेदारों निसुन्द और हयग्रीव के साथ अन्य अनेक दैत्यों से हुआ। निसुन्द ने श्रीकृष्ण पर बाणों की झड़ी लगा दी, जिन्हें श्रीकृष्ण ने पार्जन्य नामक दिव्यास्त्र से रोक दिया। उसके बाद निसुन्द ने अपने बाणों से गरुड़ को दसों दिशाओं से घेर लिया तब माधव ने सावित्र नामक दिव्यास्त्र से उन सभी बाणों को काट डाला। उसके बाद श्रीकृष्ण ने अपने बाणों से निसुन्द के रथ को नष्ट कर उसके सारथी और रथ के घोड़ों को मार दिया और फिर एक भाले से उसका भी मस्तक काट दिया।  देवताओं से हजारों वर्षों तक युद्ध करने वाले निसुन्द को धराशायी हुआ देखकर हयग्रीव और पंचनद नामक भयानक असुरों के साथ आठ लाख राक्षसों की सेना ने गरुड़ पर आरूढ़ श्रीकृष्ण और देवी सत्यभामा पर आक्रमण कर दिया।